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पंवाली कांठा बुग्याल (टिहरी, उत्तराखंड) यात्रा का वर्णन। लेखक : अभिषेक बडोनी  (Golu)

Panwali Kantha Bugyal Trip: by Abishiek Badoni (4/5/2020)


मैंने पहली बार पंवाली कांठा के बारे मैं पहली बार सातवीं या आठवीं कक्षा में सुना था और इंद्रमणि बडोनी पुस्तक (बडोनी स्मृति ग्रंथ)है उसमें पंवाली कांठा के बारे मैं पढ़ा था।
पिछली वर्ष जब लॉकडॉवन में मैं ओर मेरे कुछ दोस्तों ने पंवाली कांठा जाने की योजना बनाई।
उसमें मैं और मेरे मित्र भूपेंद्र राणा ,दीपक नेगी , हर्षवर्धन मेहर हम चारों 4/5 /2020 को पंवाली कांठा की ओर निकल पड़े।

4/5/2020 को हम सुबह 5 बजे अखोड़ी से निकल पड़े।बीच मैं बजियाल गांव में हमें जो गाइड करने वाला था हमारा मित्र भूपेंद्र राणा वो मिला और हम विशोंन घाटी (विश्वनाथ घाटी) से होते हुए पंवाली की ओर निकल पड़े मन में पहली बार काफी उत्सुकता थी की पंवाली कांठा को देखने की।

 हम लगभग 10 बजे करीब लुटगुरू नामक स्थान पर पहुंचे एक छोटा सा घास का मैदान वो भी ढालन वाला हमने वहां पर बैठ कर चाय का आनंद लिया , लुटगुरु स्थान है यहां पर गुजरों की बनाई हुई झोपड़ी आदि देखने को मिली ।इसके बाद हम लगभग 11:30 तक मगरों देवी मंदिर में पहुंचे जो की ये क्षेत्र शायद बांगर मैं पड़ता है ।ओर उसके बाद हम लगभग 12:45 के आस पास हम कोणी बुगियाल मैं पहुंचे काफी सुंदर बुगियाल काफी लंबा और हमने दिन मैं वहां पर दिन का खाना खाया और साथ मैं चाय का आनंद लिया।
उसके बाद चलते चलते हम द्वारगला से होते हुए माटी बुगीयाल पहुंचे माटि बुगियाल लगभग जहां तक तुम्हारी नजरे पड़ती हैं वहां तक घास का एक लंबा सा मैदान,ओर बीच मैं एक छोटा सा पानी का ताल । इस मैदान को पार करने मैं लगभग एक से डेढ़ घंटे लगते हैं।जो बुगियाल है उसके चारों ओर हिमालय की श्रृंखलाएं से हवाओं का रूबारु होता है।
लगभग4 ,4:30 बजे हम शाम को पंवाली कांठा पहुंचे । काफी सुंदर और घुतू के लोगों के द्वारा बनाई गई छान है रात को मैं और मेरे दोस्त ने यहीं पंवाली रहने का निर्णय लिया।रात्रि का भोजन हमने यहीं किसी छान पर किया और रात्रि विश्राम भी हमने किसी की छान ( छान ,: अर्थात गांव वालों द्वारा अपने और अपने जानवरों के लिए बनाया हुआ स्थान) पर किया ।
सुबह जैसे ही हम उठें तो हल्का कोहरा था जैसे ही हम 6 बजे उठे तो सीधे हिमालय की श्रेणियों के दर्शन ।7 बजे प्रातः मैं मेरे मित्र ओर मोगली आगे चौकी के लिए निकल पड़े ।बीच मैं काफी चरवाहें दिखे साथ मैं बीच मैं राजखर्क, ताली आदि काफी सुंदर रमणीक क्षेत्र हैं
दिन मैं लगभग हम 1 बजे करीब हम चौकी बुगियाल पहुंचे।ओर हम जो चरवाहें है उनके टेंट पर रुके । क्योंकि जो हमारा गाइड भूपी था वो हर साल अपनी बकरियों को लेकर पंवाली कांठा आता था और उनकी बकरियां 6 7 महीने उन्ही चरवाओं के पास रहती हैं।
करीब 1 बजे जैसे ही हम टेंट के अंदर गए तो भूपेंद्र राणा ने कहा की भाई अब यहां आराम कर लो।ओर भूपेंद्र ओर हर्ष दीपू भाई सब लगभग तीनों ने चाय और मेगी बनाई और साथ मैं कुछ बेकरी के समान बंद बिस्किट आदि चीजै खाई ओर खाने के बाद डेड दो घंटे हमने आराम किया ।जैसे ही हमारी नींद 3:30 तक खुली तो बारिश हो रही थी 4:15 तक जैसे ही बारिश बंद हुई और हम बाहर निकले तो बाहर लगभग 7 ,800 बकरी और भेड़े साथ मैं घोड़े आदि घास के मैदान से अपने स्थान पर आ रहे थे।

Rememberable Videos in Panwali Bugyal:



साथ ही 3 भोटिया कुत्ते जो की उन बकरियों की देख रैख कर रहे थे ।जैसे ही हम बाहर आये तो हमारी मुलाकात शौकी अंकल और एक दूसरे थे उन से हुई । नए स्थानों पर नए लोगों ओर उस स्थान पर रहना और वहां के बारे मैं जानना।जैसे ही हमारे गाइड भुपि ने मुलाकात कराई तो हम तो काफी खुश हुए उन अंकल को देख कर जैसे ही मुलाकात हुई 5 बजे करीब अंकल ने हम सब के लिए चाय (वो भी बकरी के दूध की बनाई चाय )फिर चाय के साथ हुक्का ओर पंवाली के बारे मैं हमें जानकारी और रहन सहन के बारे मैं बताया उन के साथ बात करके मुझे काफी अच्छा लगा । शाम को हम चौकी बुगियाल मैं हम शाम को घूमे फोटोशूट की भोटियां कुत्तों के साथ घूमे, उनके साथ खेला।

लगभग 6:30 बजे उन अंकल ने उन भोटिया कुत्तों को रोटी और छाच दी और उसके बाद वो शाम के 7 बजे से सुबह के शाम तक वो अपना काम बकरियों व भेड़ों की रखवाली करने लगे। लगभग 8:30 बजे रात्रि करीब हमने रात्रि भोजन किया ।ओर हमारा बीच मैं टेंट और चारों तरफ भेड़ बकरी आदि ।ओर बकरियों के चारों तरफ भोटिया कुत्ते आदि जो की सब की रखवाली कर रहे थे।
भोटिया कुत्तों के जितना देखा वास्थव में वो काफी तेज ,वफादार और शक्तिशाली होते हैं,ओर मित्रता के प्रतीक होते हैं।
शाम को हमारा त्रियुगीनारायण जाने का मन तो था पर लॉकडॉवन के कारण वहां बंद कर दिया था । इसी लिए हम प्रातः 8 बजे चौकी से घर की ओर प्रस्थान कर गए।ओर शाम 7 बजे हम सब अपने अपने घर पहुंचे।
पंवाली कांठा के बारे मैं जितना पढ़ा व सुना था की पंवाली कांठा की सुंदरता के बारे मैं वास्थव मैं पंवाली काफी सुंदर हिमालय बुगियालोंं में से एक है
चारों तरफ हिमालय की श्रृंखलाएं मध्य मैं पंवाली बुगियाल।
पंवाली कांठा का जो मुख्य रास्ता है वो टिहरी गढ़वाल के घनसाली से लगभग30 किलोमीटर दूर स्थित घुतू से है जो मानचित्र पर भी दर्शाया है 
जबकि पंवाली कांठा जो रास्ता है बांगर जखोली ब्लॉक ,चिरबीटीया आदि स्थानों से भी जा सकते हैं लेकिन ये रास्ते मानचित्र पर अंकित नहीं है।ये पुराने लोगों के द्वारा बनाये गये रास्ते हैं।
पंवाली कांठा बुगियाल वर्णन ( जो मैंने देखा)
पंवाली कांठा बुगियाल टिहरी का सबसे बड़ा व सर्वश्रेष्ठ ट्रेक है ।यहाँ गढ़वाल हिमालय के उच्च ऊंचाई वाले घास के मैदान (बुग्याल) हैं, जिनमे विभिन्न प्रकार के आकर्षक फूल, जड़ी बूटी अधिकमात्रा में पाई जाती हैं। यहां अप्रैल मई मैं ये लाल व गुलाबी रंग के बुरांश से सदाबहार रहता है
यहां विविध प्रकार की जड़ी बूटियों जैसे जटा मासी , कीड़ाजड़ी ,अतीश कड़वी ब्रमी आदि विभिन्न प्रकार की जड़ी बूटियों पाई जाती है
मेरे लिए सबसे खुबसुरत पल ये था की नए स्थानों मैं नई लोगों के साथ नए स्थानों की जानकारी लेना।ओर उनके साथ घुलना, नई चीजे प्राप्त करना।
यहां से हिमालय की श्रृंखलाएं के मनमोहक दृश्य के साथ साथ यहां से केदार बद्री , सहस्त्राल खतलिंग आदि के दर्शन भी होते हैं 
हिमालय की श्रृंखलाएं जैसे चौखंबा नीलकंठ खतलिंग आदि श्रृंखलाओं से यहां से मनोरम दृश्य आप देख सकते हैं।
यह ट्रेक घुत्तु नामक स्थान से प्रारम्भ करके 

 त्रियुगी नारायण तक पूरा किया जाता है. त्रियुगी नारायण में स्थित शिव मंदिर का हिन्दू धर्म में विशेष धार्मिक महत्व है. ऐसा माना जाता हैं कि इसी स्थान पर भगवान विष्णु की उपस्थिति में शिव पार्वती का विवाह हुआ था।



गढ़वाल हिमालय में स्थित जो पंवाली काँठा ट्रेक /बुगियाल घास के मैदान कई जंगली जानवरों व पक्षी का घर है. यहां विवध प्रकार के जानवर/पक्षी जैसे (नीली भेड़) घोर, हिरण , बारहसिंगा चिता,हिमालयी भालू, दुर्लभ कस्तूरी मृग , उत्तराखंड राज्य पक्षी मोनलआदि को देख सकते हैं।
 गर्मियों के महीने इस ट्रेक में जगह-जगह चरवाहे दिखाई देते हैं जो शिवालिक रेंज और हिमालय के बीच निवास करते हैं।
यह ट्रेक का रास्ता दूसरी ओर यानि विशोन पर्वत ग्यारह गांव अखोड़ी होते हुए पंवाली कांठा जाना चाहते हो तो बीच मैं काफी मनमोहक जगह जैसे लूटकुरू मग्रो देवी , कोणी बुगीयाळ, जंगसौड़ द्वारगला , मटिया आदि होते हुए पांवाली कांठा पहुंच सकते हैं।
पुराने समय मैं लोग पंवाली कांठा होते हुऐ केदारनाथ जाते थे।
पंवाली कांठा से आगे ताली ,चौकी आदि रमणीक स्थल हैं ।
पंवाली से ये त्रिजुगीारायण होते हुए केदारनाथ मंदिर तक ये ट्रेकिंग रूट काफी मनमोहक है ।
पुराने समय मैं लोग पंवाली कांठा होते हुऐ केदारनाथ जाते थे।
समुद्र तल से पंवाली कांठा बुगियाल की ऊंचाई लगभग 3,368 m (11,050 ft)
Ghuttu (घूतू से लगभग 15 km)
विश्वनाथ , अखोड़ी गांव से लगभग 26 km 
लेखक : अभिषेक बडोनी 
फोटो अभिषेक बडोनी
एवं मुकुल नैथानी 
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