सार्वजनिक परिवहन का नया आयाम (New dimension of public transport)
सार्वजनिक परिवहन का नया आयाम (New dimension of public transport)
सुरेंद्र सिंह और विनय कुमार सिंह। दिल्ली और उसके आसपास के इलाके विश्व की सबसे बड़ी नगरीय बस्तियों में से एक हैं। ऐसे इलाके के संतुलित एवं सतत विकास के लिए सक्षम एवं किफायती सार्वजनिक परिवहन एक अपरिहार्य पहलू है। दिल्ली-एनसीआर की ऐसी ही आवश्यकता की पूर्ति के लिए नेशनल कैपिटल रीजन ट्रांसपोर्ट कार्पोरेशन (एनसीआरटीसी) ने रैपिडएक्स जैसा विकल्प उपलब्ध कराया है। इस रीजनल रैपिड ट्रांजिट सिस्टम्स (आरआरटीएस) परियोजना को साकार रूप देने के लिए भारत सरकार के अलावा उत्तर प्रदेश, हरियाणा और राजस्थान सरकारें साथ आई हैं। यह उनका संयुक्त उपक्रम है।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी रैपिडएक्स के दिल्ली-गाजियाबाद-मेरठ कारिडोर के साहिबाबाद-दुहाई खंड का उद्घाटन करेंगे। इसके साथ ही देश की पहली रैपिडएक्स परियोजना परिचालन में आ जाएगी। रैपिडएक्स का लक्ष्य लोगों को तेज, सुरक्षित, आरामदायक और भरोसेमंद यात्रा प्रदान करना है और वह भी किफायती दरों पर। अपने इसी लक्ष्य की पूर्ति के लिए रैपिडएक्स एक समय पर 180 किलोमीटर प्रति घंटा की रफ्तार से दौड़ती नजर आएगी।
दिल्ली-मेरठ एक्सप्रेसवे से पहले दिल्ली और मेरठ के बीच की यात्रा बड़ी मुश्किलों भरी हुआ करती थी, पर अब स्थितियां बदल रही हैं। इसमें आरआरटीएस की भी अहम भूमिका होगी। इसकी वाणिज्यिक सेवाएं शुरू होने के बाद अनुमान है कि इससे 18 लाख टन कार्बन डाईआक्साइड के बराबर कार्बन उत्सर्जन घटाने में मदद मिलेगी। आरआरटीएस को मूर्त रूप देने की राह में कोविड-19 जैसी तमाम चुनौतियों के बावजूद इसका काम द्रुत गति से हुआ है। काम इतनी तेजी से हो रहा है कि जून, 2025 तक पहला चरण पूरी तरह आकार ले लेगा। इस अनूठी परियोजना का एक विशिष्ट पहलू यह है कि इसने मेरठ मेट्रो को आरआरटीएस इन्फ्रास्ट्रक्चर से जोड़ने का काम किया है। इससे सरकारी खजाने को करीब 6,300 करोड़ रुपये की बचत हुई है। यात्रियों को सहूलियत मिलने के साथ ही इसके कई और लाभ भी देखने को मिलेंगे।
यह महत्वाकांक्षी परियोजना ‘मेक इन इंडिया’ और भारत की विनिर्माण क्षमताओं की सफलता की भी परिचायक है। इसके लिए देश की पहली प्रमाणित हाई स्पीड रोलिंग स्टाक और शत प्रतिशत ट्रेन सेट गुजरात के सावली में बनाई गई। प्लेटफार्म स्क्रीन डोर्स (पीएसडी) का डिजाइन और निर्माण भी पहली बार पूरी तरह स्वदेशी स्तर पर हुआ। इसके लिए एनसीआरटीसी और भारत इलेक्ट्रानिक्स लिमिटेड (बीईएल) की साझेदारी रंग लाई। सार्वजनिक परिवहन के स्तर पर यह पहल असल में देश की नई क्षमताओं का शंखनाद है। यह परियोजना पीएम गतिशक्ति नेशनल मास्टर प्लान (एनएमपी) के अनुरूप ही डिजाइन की गई है, ताकि एक कारिडोर से दूसरे कारिडोर के बीच आरआरटीएस की निर्बाध आवाजाही से मल्टी-माडल कनेक्टिविटी मूर्त रूप ले सके और इसमें यात्रियों को इंटरचेंज की कोई दुविधा न झेलनी पड़े।
यात्रियों की सुविधा के लिए आरआरटीएस स्टेशनों को मौजूदा बस टर्मिनलों, रेलवे और मेट्रो स्टेशनों के साथ जोड़ दिया गया है। आरआरटीएस ट्रेनों में महिलाओं के लिए विशेष कोच होगा। इतना ही नहीं, प्रत्येक कोच में महिलाओं, बच्चों, बुजुर्गों और दिव्यांगों के लिए भी विशेष सीटें चिह्नित की जाएंगी। दिव्यांगों के लिए व्हीलचेयर सुविधा भी सुनिश्चित होगी। हमारी परिचालन क्षमताओं का 40 प्रतिशत हिस्सा महिलाओं ने ही संभाला हुआ है।
आपात स्थिति में मरीजों को समय से आवश्यक स्वास्थ्य सुविधाओं तक पहुंचाने के लिए ग्रीन कारिडोर सुविधा जैसी पहल भी की गई है। सार्वजनिक परिवहन के स्तर पर भारत में पहली बार ऐसा होने जा रहा है। एनसीआरटीसी नेशनल कामन मोबिलिटी कार्ड (एनसीएमसी) को भी लागू करने जा रहा है और देश में पहली बार यूपीआइ-आधारित टिकट वेंडिंग मशीनों (टीवीएम) की सुविधा भी मिलेगी। परियोजना निगरानी के लिए एनसीआरटीसी ने ‘स्पीड’ (सिस्टमेटिक प्रोग्राम इवेलुएशन फार एफिशिएंट डिलिवरी आफ प्रोजेक्ट) जैसा टूल बनाया है, जिसे वित्तीय साझेदार एडीबी की ओर से भी सराहना मिली है। ‘स्पीड’ की सफलता और स्वीकार्यता को इससे भी समझा जा सकता है कि बेंगलुरु मेट्रो और हरियाणा रेल इन्फ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट कार्पोरेशन भी परियोजना निगरानी के लिए ‘स्पीड’ का उपयोग कर रहे हैं। इतना ही नहीं, विभिन्न स्तरों पर एनसीआरटीसी ने जो नई पहल और नवाचार किए हैं, उन्हें भारतीय रेलवे, दिल्ली मेट्रो, बेंगलुरु मेट्रो, भोपाल मेट्रो, इंदौर मेट्रो और मुंबई मेट्रो रेल कार्पोरेशन लिमिटेड जैसे संगठनों द्वारा अपनाया जा रहा है।
आरआरटीएस के पहले चरण में तीन पड़ाव हैं। पहला पड़ाव दिल्ली से मेरठ का है। दूसरे पड़ाव में इसका दायरा दिल्ली से पानीपत (हरियाणा) तक हो जाएगा और तीसरे पड़ाव में दिल्ली से धारूहेड़ा (राजस्थान) तक विस्तार होना है। इसकी कुल लागत करीब एक लाख करोड़ रुपये है। निश्चित रूप से निवेश के लिहाज से यह बहुत बड़ा दांव है, लेकिन इसके दूरगामी लाभों को देखते हुए यह परियोजना बहुत उपयोगी भी सिद्ध होगी। इससे शहरी ढांचे के विकास का संतुलित रूप आकार लेने के साथ ही बेहतर कनेक्टिविटी भी सुनिश्चित होगी। इसके साथ ही यह परियोजना बड़े पैमाने पर रोजगार सृजन के अतिरिक्त विपुल कारोबारी संभावनाओं का भी सृजन करेगी।