तेजी से गिर रही है राज्य के कृषि उत्पादकों की संख्या।
राज्य में बीते छह दशकों में किसानों की संख्या में 14 प्रतिशत से अधिक की गिरावट आई है। इन छह दशकों में कृषि उत्पादकों का प्रतिशत 35 से घटकर 21 प्रतिशत रह गया है। जबकि इस क्षेत्र में लघु श्रमिकों की संख्या घटकर 37 से 16 फीसदी हो गई है। इस बात का खुलासा राष्ट्रीय हिमालयी अध्ययन मिशन के तहत कराए गए सर्वे में हुआ है।
सर्वे में इस बात की पुष्टि हुई है कि 1993 में राज्य की सकल घरेलू आय में 33 प्रतिशत से अधिक योगदान देने वाली खेती आज मात्र 10 फीसदी योगदान दे रही है। राज्य में कृषि क्षेत्र लगातार सिकुड़ रहा है और नगरीय क्षेत्र तेजी से बढ़ा है। यह सर्वे जम्मू कश्मीर और उत्तराखंड के चयनित क्षेत्रों में कराया गया। 1961 और 2011 के आंकड़ों के तुलनात्मक अध्ययन के आधार पर पता चलता है कि मैदानी की अपेक्षा पहाड़ों में गेहूं और चावल का उत्पादन प्रति हेक्टेअर आधे से कम हो रहा है। राज्य के सकल घरेलू उत्पाद में 1993 में कृषि का योगदान 33.84 फीसदी था, जो अब 10.39 फीसदी रहा गया है।
राष्ट्रीय हिमालयी अध्ययन मिशन के नोडल अधिकारी किरीट कुमार के मुताबिक कृषि पर निर्भर लोगों के सामने लगातार संकट बढ़ रहा है। पर्वतीय क्षेत्रों में खेती को लेकर विशेष प्रयास और नीति बनाने की जरूरत है। अध्ययन से यह भी पता चलता है कि यदि पलायन को केंद्रीय रूप से 0.5 फीसदी कम किया जाए तो उत्पादकता 3.01 फीसदी बढ़ सकती है।