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आनंद कुमार ने दिया ‘आनंद मंत्र’- आनंद कुमार से जानें, ‘मोबाइल की लत’ से बच्चे कैसे पाएं छुटकारा ?

आनंद कुमार ने दिया ‘आनंद मंत्र’ – मोबाइल को हराना है तो मिलकर हराएं. यानी परिवार के भीतर मोबाइल से जो टापू बन गए हैं उनको तोड़ें. एक-दूसरे से बातचीत करें, एक-दूसरे को समझने का प्रयास करें

हमारे हाथ में मोबाइल होता है और हमें दुनिया मुट्ठी में लगने लगती है, लेकिन सच्चाई क्या है, हम खुद मोबाइल की मुट्ठी में हो जाते हैं. हम मोबाइल पर वह नहीं करते जो चाहते हैं, बल्कि वह करते हैं जो मोबाइल कंपनियां हमसे करवाना चाहती हैं. आज इंटरनेट का जाल हमारे चारों ओर फैल गया है. इसका हम पर क्या असर पड़ रहा है, हम मोबाइल पर नजर टिकाए समाज में बदल गए हैं. मोबाइल का पूरा असर पढ़ाई-लिखाई पर हो रहा है. लोगों में अब एकाग्रता नहीं बची है, कुछ भी पढ़ते हैं, भूल जाते हैं. याद रखने की जरूरत नहीं है अब क्योंकि गूगल है आपके पास. हम एक भूली हुई बेखबर पीढ़ी में अपने आप को बदल रहे हैं. सोचने, समझने और रचने की क्षमता खत्म होती जा रही है. न स्मृति, न अनुभव, बस हम हैं मोबाइल की मुट्ठी में

छात्र एकांश ने बताया कि 12वीं बोर्ड के टर्म वन के दौरान पता चला कि मोबाइल के जाल में फंस रहा हूं. छात्र प्रणय वाही ने बताया कि मां-पिता के टोकने पर भी पहले लगता था कि मोबाइल से आगे असर नहीं होगा, पर बहुत ज्यादा असर हुआ. हमें पता भी नहीं था कि हमारे साथ क्या होने वाला है, क्या नहीं. कक्षा 9वीं में गेम खेलने लगा, पब्जी वगैरह. पता नहीं चला कब टाइम बीत गया. पूरा दिन निकल जाता था, सिर्फ गुस्सा आता था. मां-बाप पर गुस्सा निकाल देता था. कक्षा 12वीं में आते-आते समझ गया कि यह गलत है, यह छोड़ना पड़ेगा. मैंने अपना ध्यान कहीं और लगाया, किताबों में लगाया, खेलकूद में लगाया, दोस्तों के साथ बाहर गया. इन छोटी-छोटी चीजों से अच्छा लगा.

माता-पिता के टोकने पर भी नहीं बंद किया गेम खेलना (Didn’t stop playing games even after being interrupted by parents)


एकांश सिंघल ने बताया कि, मुझे मेरे पेरेंट्स रोकते थे, सर दर्द होने लगा था. मोबाइल डिस्प्ले बहुत ज्यादा देख रहा था. माइंड नहीं किया क्योंकि मजा आ रहा था. छोड़ नहीं पाया गेम को. फिर सोचा कुछ तो तरीका हो जिससे एडिक्शन कम हो. फिर फ्रेंड्स के साथ आउटिंग करना ट्राई किया.

आनंद कुमार ने कहा, बच्चे मोबाइल पर गेम खेलते हैं, मजा आता है, लेकिन उनको पता नहीं चलता कि अपने शरीर को नष्ट करके किस कीमत पर उनको यह अच्छा लग रहा है. जो उनको गड्ढे में गिरा रहा है.

छात्र प्रणय वाही ने बताया कि मोबाइल पर गेम खेलने से उनका ग्रेड धीरे-धीरे गिरता गया. सोचा फिर ऊपर आ जाएगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ और इसी वजह से फेल हो गया.

पढ़ाई पार्ट टाइम होती जा रही थी (studies were becoming part time)


एकांश ने बताया कि स्कूल के दोस्तों के साथ मोबाइल गेम्स खेलते थे. दोस्त जाने लगे तो पब्जी खेलने के लिए ऑनलाइन फ्रेंड ढूंढे. एक्जाम में ग्रेड डाउन होने लगा. तब पढ़ाई पार्ट टाइम होती जा रही थी. मोबाइल का एडिक्शन 12 से 13 घंटे का हो गया था. परेंट्स ने बोला, काउंसलर ने समझाया, पर समझ नहीं आया.

जब भी आप मोबाइल गेम या गलत आदतों के शिकार हो जाते हैं, तब आपको पता भी नहीं चलता कि आप किस तरह से फंस चुके हैं. जब पता चलता है तब तक काफी देर हो जाती है. जब निकलना चाहते हैं तो छटपटाहट होती है. ऐसी स्थिति में फिर मोबाइल आपको अपनी तरफ खींच लेता है.

किताबें पढ़ने से आता गया बदलाव ( Changes brought about by reading books)


प्रणय वाही ने बताया कि उन्होंने पहले किताबें पढ़नी शुरू कीं, स्कूल की नहीं बल्कि बाहर की किताबें. इससे पॉजिटिव एनर्जी आई. लाइब्रेरी जाना शुरू किया. फिर दिन पूरा किताबों में निकलता था.

एकांश ने कहा कि, मेरा संदेश यह है कि गेम को मजे के लिए, टाइम पास करने के लिए खेल रहे हैं तो उसको पूरी तरह खत्म करना पड़ेगा. यदि करियर ऑप्शन की तरह देख रहे हो तो अच्छे से खेलो, थोड़ा प्रोफेशनल हो. प्रणय ने बताया कि माता-पिता ने मोबाइल गेम खेलने पर मारा भी. एक स्थिति में समझ आ गया कि उस मार का भी असर है.

शो में मौजूद छात्र-छात्राओं ने कई सवाल किए जिनके आनंद कुमार और प्रणय व एकांश ने जवाब दिए.

आनंद कुमार ने शो के अंत में ‘आनंद मंत्र’ दिया- मोबाइल को हराना है तो मिलकर हराएं. यानी परिवार के भीतर मोबाइल से जो टापू बन गए हैं उनको तोड़ें. एक-दूसरे से बातचीत करें, एक-दूसरे को समझने का प्रयास करें. आपस की मुश्किलों को भी, आपसी जरूरतों को भी आपकी दुनिया जितनी साझा होगी, जितना आप आपस में बातचीत करेंगे उतना ही मोबाइल के मायाजाल से बाहर रहेंगे.
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admin

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