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टाइगर प्रोजेक्ट (एचएटीपी) के तहत अब पहाड़ों पर (उच्च हिमालयी क्षेत्रों में) बाघ की खोज की जाएगी।



उत्तराखंड में वन विभाग और भारतीय वन्यजीव संस्थान (डब्ल्यूआईआई) देहरादून की ओर से उच्च स्थलीय टाइगर प्रोजेक्ट (एचएटीपी) के तहत अब पहाड़ों पर (उच्च हिमालयी क्षेत्रों में) बाघ की खोज की जाएगी। इसके लिए समुद्रतल से 3000 से 5000 मीटर की ऊंचाई पर कैमरा ट्रैप लगाने की तैयारियां शुरू हो गई हैं। वन विभाग और डब्ल्यूआईआई देहरादून के विशेषज्ञ शीघ्र स्वचालित कैमरे लगाने का कार्य शुरू कर देंगे।

पहली बार वर्ष 2016-17 में 3300 मीटर की ऊंचाई पर स्थित छिपलाकेदार क्षेत्र के कनार गांव में डब्ल्यूआईआई की अंकिता भट्टाचार्या ने बाघिन को ट्रैप किया था। इसके बाद फिर एक बाघिन को समुद्रतल से 3700 मीटर की ऊंचाई पर ट्रैप किया।
अंकिता भट्टाचार्य ने बताया कि पिथौरागढ़ बाघ के लिए मुफीद जगह है। अगर सही तरीके से कैमरे लगाए जाएं तो बाघ दिख सकते हैं। उन्होंने बताया कि गोरी घाटी क्षेत्र में बाघ के मिलने की अधिक उम्मीद है। भूटान में भी समुद्रतल से 4000 मीटर की ऊंचाई पर नर बाघ मिला था।

भरल है बाघ का पसंदीदा भोजन:
उच्च हिमालयी क्षेत्रों में पाया जाने वाला भरल बाघ का पसंदीदा भोजन है। भरल को ब्लू शीप या हिमालयन भेड़ भी कहा जाता है। बाघ भरल के शिकार की तलाश में ऊंचाई वाले इलाकों तक पहुंच जाता है।

यहां लगाए जाएंगे कैमरा ट्रैप:
हिमालयी क्षेत्र में बाघ की मौजूदगी को पुख्ता करने के लिए एचएटीपी के तहत कनालीछीना विकासखंड में अस्कोट, मुनस्यारी के उच्च हिमालयी क्षेत्र, धारचूला के दारमा व दुग्तू के बुग्यालों और ग्लेशियरों में कैमरे लगाए जाएंगे।

इसके लिए वन विभाग और डब्ल्यूआईआई ने तैयारियां शुरू कर दी हैं। इन क्षेत्रों में बाघ की खोज के लिए 100 कैमरे लगाए जाएंगे। इसके लिए वन विभाग और वन्यजीव विशेषज्ञ उच्च हिमालयी क्षेत्रों में जाएंगे। टीम के सदस्य ग्रामीण बुजुर्गों सहित अन्य लोगों से भी बाघ की मौजूदगी पर चर्चा करेंगे।

हिम तेंदुए को भी किया जाएगा ट्रैप:
वन विभाग बाघ की खोज के साथ ही उच्च हिमालयी क्षेत्रों में हिम तेंदुए को भी ट्रैप करने का प्रयास करेगा। जो कैमरा ट्रैप लगाए जाएंगे, उन्हीं कैमरों से स्नो लैपर्ड को भी ट्रैप किया जाएगा।
-नवीन पंत, एसडीओ वन प्रभाग

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