आइए जानते हैं क्यों जलाया जाता है रावण का पुतला
Let us know why the effigy of Ravana is burnt
राज एक्सप्रेस। हिंदू धर्म में हर साल अश्विन माह के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को दशहरे का त्योहार मनाया जाता है। इस दौरान देशभर में रावण के पुतले का दहन किया जाता है। हिंदू धर्म में दशहरे के त्योहार को बुराई पर अच्छाई की और अंधकार पर रोशनी की जीत का प्रतीक माना जाता है। हिंदू मान्यताओं के अनुसार इसी दिन भगवान श्री राम ने लंकापति रावण का वध किया था। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि रावण के ही पुतले का दहन क्यों किया जाता है? कंस, महिषासुर जैसे राक्षसों के पुतले क्यों नहीं जलाए जाते हैं?
बुराई का सबसे बड़ा प्रतीक है रावण (Ravana is the biggest symbol of evil)
दरअसल हिन्दू धर्म में रावण को बुराई का सबसे बड़ा प्रतीक माना जाता है। रावण अस्त्र-शस्त्रों का ज्ञाता और बलशाली तो था ही, साथ ही वह महाज्ञानी भी था। यही कारण है कि रावण के वध के बाद भगवान श्री राम ने अपने भाई लक्ष्मण को उसके पास राजनीति की शिक्षा लेने के लिए भेजा था। इतना ज्ञानी होने के बावजूद रावण की सबसे बड़ी कमजोरी उसका अहंकार था। रावण अपने अहंकार के चलते ही गलतियां करता रहा और अपने अंत का कारण स्वयं बना। यही कारण है कि रावण को बुराई का सबसे बड़ा प्रतीक माना जाता है।
रावण को मारना आसान नहीं था (It was not easy to kill Ravana)
रावण को अपनी ताकत पर बहुत अहंकार था। वह विश्व विजेता बनना चाहता था। इसके लिए उसने भगवान ब्रह्मा की तपस्या करके अमर होने का वरदान मांगा था। लेकिन भगवान ब्रह्मा ने यह कहते हुए मना कर दिया कि मृत्यु तो तय है। इस पर रावण ने यह वरदान मांगा कि मेरी मृत्यु मनुष्य और वानर के सिवा किसी के हाथों न हो। रावण को अहंकार था कि मेरी शक्ति से तो देवता भी डरते हैं, ऐसे में सामान्य मनुष्य और वानर मेरा क्या बिगाड़ लेंगे। यही कारण है कि भगवान विष्णु ने रावण को मारने के लिए सामान्य मनुष्य के रूप में अवतार लिया। एक सामान्य मानव के रूप में जब भगवान श्री राम ने रावण का वध किया तो इससे यह सन्देश गया कि बुराई कितनी भी शक्तिशाली ही क्यों न हो, अंत में जीत अच्छाई की ही होती है। यही कारण है कि हर साल बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में रावण का पुतला दहन किया जाता है।