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Uniform Civil Code के मास्टर स्ट्रोक की काट में जुटी कांग्रेस, चाहकर भी नहीं हो पा रही आक्रामक

उत्तराखंड में समान नागरिक संहिता का पुष्कर सिंह धामी सरकार का मास्टर स्ट्रोक एक बार फिर कांग्रेस के लिए चिंता का सबब बन गया है। विधानसभा चुनाव से ऐन पहले चुनावी वायदे के रूप में इसे उछालकर भाजपा लाभ की स्थिति में रही थी।
अब लोकसभा चुनाव से पहले इसे लागू करने की दिशा में सरकार के बढ़ते कदम का विरोध करने से प्रमुख विपक्षी दल को हिंदू वोट बैंक के ध्रुवीकरण का अंदेशा है। समान नागरिक संहिता की काट के लिए धार्मिक आधार के बजाय हिंदू समाज के भीतर जातीय ध्रुवीकरण तेज करने की रणनीति पर कांग्रेस आगे बढ़ सकती है।

कांग्रेस इस मुद्दे पर चाहकर भी नहीं हो पा रही आक्रामक:
उत्तराखंड की भौगोलिक व सामाजिक परिस्थितियों और तेजी से जनसांख्यिकीय बदलाव के बीच समान नागरिक संहिता को लेकर धामी सरकार का दांव बीते वर्ष विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को असहज कर चुका है। धामी-2.0 सरकार की वापसी में इसकी महत्वपूर्ण भूमिका आंकी जाती है।
अब वर्ष 2024 में लोकसभा चुनाव से पहले समान नागरिक संहिता लागू करने की कवायद ने कांग्रेस को सतर्क कर दिया है। छोटे से लेकर बड़े किसी भी मामले को लपक कर धामी सरकार और सत्तारूढ़ दल पर हमला करने का मौका हाथ से जाने नहीं दे रही कांग्रेस इस मुद्दे पर चाहकर भी आक्रामक नहीं हो पा रही है। लोकसभा की पांच सीटें प्रदेश की सभी 70 विधानसभा क्षेत्रों को समेटे हैं।
जनसांख्यिकीय में तेजी से परिवर्तन का असर अब चुनावी राजनीति पर भी देखा जाने लगा है। प्रदेश की 15 से 20 विधानसभा सीटों पर मुस्लिम वोटबैंक मजबूत तो है, लेकिन अधिकतर सीटें अब भी हिंदू बहुल हैं। प्रदेश की भू-राजनीतिक परिस्थितियों को ध्यान में रखकर पार्टी पूरी सावधानी बरतती दिख रही है। लगातार पिछले दो विधानसभा और लोकसभा चुनावों से सबक लेकर कांग्रेस अब भाजपा को ऐसा मौका नहीं देना चाहती कि हिंदू वोट बैंक को गोलबंद किया जाए। पार्टी के सभी बड़े नेता इस मामले में संभलकर बोल रहे हैं।
कांग्रेस खुलकर समान नागरिक संहिता का विरोध नहीं कर रही है, लेकिन सरकार पर सबको साथ लेकर चलने और सभी धर्मों का आदर करने को लेकर हमले भी बोल रही है। साथ ही पार्टी अब नई व्यवस्था लागू करने से पहले सभी धर्मों को विश्वास में लेने और हिंदू धर्मावलंबियों में जनजातियों, आदिवासियों, महिलाओं और अनुसूचित जाति को केंद्र में रखकर सरकार की घेराबंदी में जुट गई है। प्रयास यह किया जा रहा है कि भाजपा के पक्ष में हिंदू वोट बैंक के ध्रुवीकरण को किसी भी तरह से रोका जाए।
‘समान नागरिक संहिता लागू करना असली सवाल नहीं है। सवाल यह है कि इसे कैसे, कब और किस सिद्धांत के आधार पर लागू किया जाए। बाबा साहब आंबेडकर के अलावा नेहरू, लोहिया की समान नागरिक संहिता को नीति निर्देशक तत्वों में रखने के पीछे मंशा यह थी कि इन्हें लागू करना देश के लिए एक लक्ष्य होगा। इस मामले में नया बखेड़ा शुरू करने से बेहतर होगा कि मोदी सरकार अपने ही पिछले विधि आयोग की सिफारिशों को स्वीकार कर सभी समुदायों के पारिवारिक कानूनों में तर्कसंगत और संविधान सम्मत बदलाव की शुरुआत करे।’
– यशपाल आर्य, नेता प्रतिपक्ष, उत्तराखंड

कामन सिविल कोड में विभिन्न राज्यों में आदिवासियों, जनजातियों, मातृसत्तात्मक समाज में लागू अपने-अपने कानून को लेकर सहमति बनाई जाए। राज्य के भीतर कुछ सामाजिक समूह, जिनकी प्रथाएं कानूनी तरीके से विद्यमान हैं। विभिन्न मंदिरों और धर्मस्थलों से भी पूछा जाए कि महिलाओं व अनुसूचित जाति के प्रवेश को समान कानून बनाएंगे। कामन सिविल कोड एक चतुराई भरा नारा है।
– हरीश रावत, पूर्व मुख्यमंत्री व वरिष्ठ कांग्रेस नेता उत्तराखंड

जनहित में कोई भी कानून बनाने से पहले सभी धर्मों का ध्यान रखा जाना चाहिए। आज जनता पर जबरन कानून थोपने की कोशिश की जा रही है। ऐसा राजशाही में होता था। समस्याओं से ध्यान हटाने के लिए जनता को ध्रुवीकृत करना सरकार और सत्तारूढ़ दल का उद्देश्य है।
– करन माहरा, अध्यक्ष उत्तराखंड प्रदेश कांग्रेस कमेटी

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