उत्तराखंड में जिला पंचायतों में प्रशासकों की नियुक्ति पर राजनीतिक घमासान, कांग्रेस ने बताया – ‘लोकतंत्र पर आघात’
हरिद्वार को छोड़कर राज्य के शेष 12 जिलों में त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव कब होंगे, यह तो भविष्य के गर्त में छिपा है, लेकिन जिला पंचायतों में निवर्तमान अध्यक्ष को प्रशासक की जिम्मेदारी सौंपने के निर्णय से राजनीतिक घमासान भी तेज हो चला है। भाजपा ने इस निर्णय को पंचायतीराज एक्ट में निहित प्रविधान और जनप्रतिनिधियों की भावनाओं के अनुरूप बताया है। वहीं कांग्रेस ने सरकार को घेरते हुए कहा कि इस निर्णय से लोकतंत्र पर भरोसा करने वालों की धारणा को आघात पहुंचा है। पंचायतीराज एक्ट में प्रविधान है कि यदि किसी कारणवश त्रिस्तरीय पंचायतों में समय पर चुनाव नहीं हो पाते हैं तो उनमें अधिकतम छह माह के प्रशासक नियुक्त किए जा सकते हैं। बताया गया कि एक्ट में प्रशासक को परिभाषित नहीं किया गया है। अलबत्ता, जिला पंचायत के लिए विशेष प्रविधान है कि किसी व्यक्ति को सरकार प्रशासक नियुक्त कर सकती है। संभवतया इसी आधार पर जिला पंचायतों में निवर्तमान अध्यक्षों को प्रशासक नियुक्त करने का निर्णय लिया गया है। यद्यपि, इसे लेकर राजनीतिक गलियारों में चर्चा तेज हो चली है। कहा जा रहा है कि जब जिला पंचायतों में निवर्तमान अध्यक्षों को ही प्रशासक की जिम्मेदारी दी जा सकती है तो प्रधानों व क्षेत्र पंचायत प्रमुखों के मामले में ऐसा क्यों नहीं। ऐसे एक नहीं अनेक विषय पंचायतों को लेकर उठाए जा रहे हैं।
जिला पंचायतों की संख्या 13
असल में जिला पंचायतों की स्थिति देखें तो राज्य में इनकी संख्या 13 है। हरिद्वार जिला पंचायत के अध्यक्ष पद पर भाजपा काबिज है। शेष 12 जिलों में से नौ में अध्यक्ष भाजपा के हैं। शेष जिलों की बात करें तो इनमें से चमोली जिला पंचायत अध्यक्ष रजनी भंडारी के पति पूर्व विधायक राजेंद्र भंडारी लोकसभा चुनाव से पहले भाजपा में शामिल हो गए थे। इसके अलावा उत्तरकाशी में जिला पंचायत अध्यक्ष पद निर्दलीय जीते दीपक बिजल्वाण बाद में कांग्रेस में शामिल हो गए थे। अल्मोड़ा में जिला पंचायत अध्यक्ष कांग्रेस से हैं।