“माँ ” क्या है माँ? क्यों इतनी महत्वपूर्ण है माँ सबके लिए
दुनिया में शायद ही कोई एक माँ भी ऐसी हो जो अपने बेटे को शराब पीते देखना चाहती हो लेकिन दुनिया की कोई माँ शराब नही रुकवा पाई …
माँ कितनी पूजनीय और शक्तिशाली क्यों न रही हो पुरुषों की दुनिया में उसकी एक लक्ष्मण रेखा है जिसके भीतर ही उसे अपनी मर्यादा में रहते हुए महानता का स्वाद लेते रहना होता है
उसे समझ जाना होता है कि वो महान है पर अपने बेटे के बेटे से भी हल्का वजूदऔर वास्तविक शक्ति रखती है ।
वो महान है पर उस महानता के उपभोग का उसे कोई अधिकार नही है उसकी महानता धरती पर प्रत्यक्ष रूप से कभी आकार नही ले पाई …माँ इस दुनिया की ऐसी विडम्बना है जिसे हम दुनिया जहां की महानता दे सकते है पर बराबरी नही …अधिकार नही …वेदों से लेकर पुराणों तक वो साक्षात् दुर्गा है शक्ति है …. पर उसकी वास्तविक दुनिया में उसके हाथ में कोई वास्तविक शक्ति नही ….
आज बडे ही फक्र से लोग जिंदा और फोटो फ्रेम में सजी अपनी माँ की फोटो फेसबुक पे साझा कर उसके गुणगान कर रहे हैं
सोसल साइट्स पे माँ के प्रति भावनात्मक ज्वार भाटे उमड़ रहे हैं
लगता है माँ की बेबसी अगर आकार ले पाती तो फोटो फ्रेम से ही निकल कर चार झापड़ रसीद करती ,मुह चिचोड़ कर कहती कि सालों जिंदगी भर सेकेण्ड सिटीजन बना कर रखा मरने के बाद तो ड्रामा मत करो …
देश और राष्ट्र की में नही जानता लेकिन पहाड़ की सैकड़ो माँओं को शराब की कृपा से तिल तिल मन ही मन मरते मैंने देखा है ।
वे मरने से पहले ही मर जाती हैं ,पूरी जिंदगी दासी बन ही जीवन सर्व करती हैं पहले पति की फिर पुत्र की …फिर उसके पुत्र की …
जीवन भर घर में झाड़ और डांट खाती है हर पल कोसी जाती है और सारे पड़ोस गाँव में पति के पुत्र के ऐब छिपाती फिरती है उनके आदर्श रूप स्थापित करती फिरती है
इतनी सधी हुई वकालत तो हाई और सुप्रीम कोर्ट के ख्यातिप्राप्त वकील भी अपने मुवक्किल की नही करते जितना एक माँ अपने नालायक पुत्र और पति की मुफ्त में कर देती है ।
जबकि उसे नाम तक नही मिलता उस कुनबे का जिसकी दासता वो पिता की चौखट से निकल स्वीकार कर लेती है
कौन कहता है दुनिया से दास प्रथा खत्म हो गयी माँ के रूप में हर घर में आज भी एक दास रहती है
माँ एक शानदार सुविधा है जिसे महानता का लॉलीपॉप पकड़ा कर उसके अपनों द्वारा जम कर उपभोग किया जाता है
मातृ दिवस की शुभकामनाऐ …..