अच्छी तरह पके हुए मुर्गे और अंडे से बर्ड फ्लू फैलने का खतरा नहीं है।
विशेषज्ञों के अनुसार, पकने के बाद अंडा और मुर्गा बर्ड फ्लू से पूरी तरह सुरक्षित है। आज तक कहीं भी ऐसा कोई मामला नहीं आया जब अच्छी तरह पका हुआ मुर्गा और अंडा खाने के बाद बर्ड फ्लू फैला हो।
बर्ड फ्लू आमतौर पर एक से दूसरे पक्षी में फैलता है। यह पक्षियों से लोगों में भी फैल सकता है। इसके फैलने की दर बहुत तेज होती है। एक ही दिन में ये पूरे पोलट्री फार्म की मुर्गियों को संक्रमित कर सकता है। ऐसा होने पर मुर्गियों को मारने के अलावा कोई और चारा नहीं होता।
मुर्गियों से संक्रमण आगे किसी अन्य पक्षी या लोगों में न फैले, इसलिए उन्हें बेहोश करके दफना दिया जाता है। इस दौरान लोग मुर्गियों और अंड़ों से दूरी बनाने लगते हैं। हालांकि विशेषज्ञ बीमारी से बचाव के लिए कुछ जरूरी सावधानी बरतने की आवश्यकता जताते हैं। उनका कहना है कि 212 डिग्री फारेनहाइट (100 डिग्री सेंटिग्रेट) से अधिक पर पके हुए चिकन और अंडे से बर्ड फ्लू नहीं फैल सकता।
मुख्य पशु चिकित्साधिकारी डा. एसबी पांडे ने बताया कि वैज्ञानिक अध्ययन में भी इस बात की पुष्टि हुई है कि कुकिंग टेंपरेचर में बर्ड फ्लू नहीं रह सकता। उन्होंने कहा कि भारतीयों की खाना पकाने की पद्धति बहुत अच्छी होती है। आमतौर पर उस तापमान में किसी भी तरह का बैक्टीरिया और वायरस बचे नहीं रह सकते।
उत्तराखंड अब तक बर्ड फ्लू से पूरी तरह अछूता
पूरे देश में भले ही लगातार बर्ड फ्लू के मामले बढ़ रहे हैं, लेकिन उत्तराखंड अब तक इससे पूरी तरह अछूता है। राज्य में इस साल अब तक एक भी मामला सामने नहीं आया है। इससे पहले भी यह बीमारी बहुत ज्यादा नहीं फैली।
यही कारण है कि वर्ष 2006 से आज तक कभी भी पक्षियों को कलिंग (बेहोश कर दफनाने) की नौबत नहीं आई। इससे यह भी माना जा सकता है कि अन्य राज्यों की तुलना में उत्तराखंड काफी सुरक्षित है।
इन दिनों पूरे देश में बर्ड फ्लू का खतरा है। बर्ड फ्लू का कोई उपचार भी नहीं है। इसलिए संक्रमित पक्षियों को बेहोश कर दफनाने की प्रक्रिया अपनाई जाती है। इस प्रक्रिया को कलिंग कहा जाता है। दुनिया के हर हिस्से में संक्रमित पक्षियों को खत्म करने और इंफेक्शन की चेन तोड़ने के लिए कलिंग का सहारा लिया जाता है।
मामले बढ़ने पर हर राज्य में फॉर्म के फॉर्म कलिंग कराते हैं। पोलट्री फॉर्म की सभी मुर्गियों को बेहोश करने के बाद बड़ा गड्ढ़ा खोदकर दफना दिया जाता है। उत्तराखंड में आज तक इसकी नौबत नहीं आई।