बागेश्वर उपचुनाव में कांग्रेस की जीत की मुराद पूरी तो नहीं लेकिन संघर्ष में हाथ लगे मंत्र से कांग्रेस बढ़ाएगी BJP की मुश्किलें, नई रणनीति को मिलेगी धार
बागेश्वर उपचुनाव में कांग्रेस को भले ही हार मिली है, लेकिन पार्टी यह मानकर चल रही है कि उसके हाथ ऐसा मंत्र लग गया है, जिससे भाजपा को कड़ी टक्कर दी जा सकती है। लोकसभा चुनाव में 10 वर्षों से अविजित भाजपा के किले में सेंधमारी में अब यही मंत्र पार्टी का हथियार बनने जा रहा है। उपचुनाव की इसी रणनीति से सीख लेकर प्रदेश की पांच लोकसभा सीटों के लिए प्रमुख विपक्षी पार्टी नए सिरे से तैयारी करेगी। प्रदेश में पिछले वर्ष लगातार दूसरी बार भाजपा सरकार बनने के लगभग एक वर्ष बाद हुए बागेश्वर विधानसभा सीट के उपचुनाव ने कांग्रेस की जीत की मुराद पूरी तो नहीं की, लेकिन जीत के लिए जिस प्रकार सत्तारूढ़ दल को संघर्ष करना पड़ा, उससे प्रमुख विपक्षी दल का मनोबल बढ़ा है।
कड़ी टक्कर देने और जीत की उम्मीद
पार्टी को यह पुरजोर उम्मीद बंधने लगी है कि वह लोकसभा चुनाव में कड़ी टक्कर देने और जीतने की स्थिति में आ सकती है। वर्ष 2014 और वर्ष 2019 के लोकसभा चुनावों में कांग्रेस को प्रदेश में पांच में से एक भी सीट नसीब नहीं हो पाई। कांग्रेस ने इससे पहले वर्ष 2004 और वर्ष 2009 में हुए लोकसभा चुनाव में प्रदेश की राजनीति पर अपनी मजबूत पकड़ का परिचय दिया था। वर्ष 2009 में कांग्रेस ने पांचों सीट पर जीत का परचम लहराया था, जबकि वर्ष 2004 में उसे तीन सीट पर जीत मिली थी। अब हालत ये है कि पार्टी को जीत के लिए तरसना पड़ रहा है।
संगठन के साथ बड़े नेता भी डटे
बीते वर्ष विधानसभा चुनाव के कुछ समय बाद हुए चंपावत उपचुनाव में भी पार्टी को मतों के बड़े अंतर से हार मिली थी। हार के इस सिलसिले को तोड़ने के लिए बागेश्वर उपचुनाव में पार्टी ने रणनीतिक बदलाव करते हुए खम ठोका था। पार्टी ने बीते चार विधानसभा चुनाव से अभेद्य रही बागेश्वर विधानसभा सीट पर कड़ी टक्कर देने के लिए दमदार प्रत्याशी पर दांव खेला। प्रदेश संगठन के साथ ही पार्टी के बड़े नेता एकजुट होकर विधानसभा क्षेत्र में डटे रहे।
उपचुनाव में सर्वाधिक मत प्राप्त
कांग्रेस ने प्रदेश सरकार के विरुद्ध एंटी इनकंबेंसी को भी हथियार बनाने की कोशिश की। उपचुनाव में कांग्रेस 30 हजार से ज्यादा मत प्राप्त करने में सफल रही है। पिछले चार चुनावों में पार्टी ने उपचुनाव में सर्वाधिक मत प्राप्त किए।वर्ष 2022 में भाजपा प्रत्याशी 12,141 मतों के अंतर से जीते थे। उपचुनाव में यह अंतर घटकर 2405 मतों तक सिमट गया। लोकसभा चुनाव में अब बागेश्वर उपचुनाव की रणनीति को महत्वपूर्ण फैक्टर के रूप में प्रयोग करने की रणनीति बनाई जाएगी।