प्राकृतिक सौर्दय से सजे बौखनाग थात में स्थानीय लोगों ने जन सहयोग जुटाकर बाबा बौख नागराजा मंदिर को नया स्वरूप दिया है।
इस मंदिर में आज से तीन दिवसीय यज्ञ पाठ का आयोजन शुरू हो चुका है, जिसमें नाग रूप में भगवान श्रीकृष्ण की पूजा-अर्चना की जानी है। मान्यता है कि भगवान श्रीकृष्ण टिहरी जनपद के सेम-मुखेम से पहले यहां पहुंचे थे।
26 नवंबर को बौखनाग का तीसरे वर्ष होने वाले भव्य पारंपरिक मेला भी आयोजित होगा, जिसमें रात भर जागर के जरिए पूजा-अर्चना होगी। इस मेले में बड़कोट, मुंगरसति समेत दशगी और बणगांव सहित 22 गांवों के ग्रामीण बढ़चढ़कर हिस्सा लेते हैं। मेले को लेकर देवता के माली, पुजारियों समेत मंदिर समिति ने इसकी पूरी तैयारी कर ली है।
जानिए मान्यता:
देवता के माली संजय प्रसाद डिमरी बताते हैं कि बाबा बौखनाग की यहां बासगी नाग के रूप में उत्पत्ति हुई। मान्यता है कि भगवान श्रीकृष्ण टिहरी जनपद के सेम-मुखेम से पहले यहां पहुंचे थे, इसलिए एक वर्ष सेम मुखेम और दूसरे वर्ष बौखनाग में भव्य मेला आयोजित होता है। बौखनाग में रात भर जागरों का दौर चलता है। राडी कफनौल मोटर मार्ग के निकट 10 हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित बौखनाग जाने के लिए चार किलोमीटर पैदल चलना पड़ता है।
22 गांवों के ग्रामीणों के सहयोग से भव्य मंदिर का निर्माण:
इस बार 22 गांवों के ग्रामीणों के सहयोग से भव्य मंदिर का निर्माण किया गया। मंदिर निर्माण में लगभग 15 लाख रुपये व्यय का अनुमान है। मंदिर समिति के अध्यक्ष जयेंद्र सिंह रावत कहते हैं कि बाबा बौखनाग मंदिर का जीर्णोद्धार रौना पुरोला के राज मिस्त्री विक्रम सिंह और उनके अन्य तीन साथियों के सहयोग से हो सका है। इस मंदिर का निर्माण कार्य 2016 में शुरू हो गया था, जो अब जाकर पूरा हुआ। उन्होंने कहा कि अगर बौखनाग में पानी की समस्या का समाधान हो जाए तो यहां चारधाम आने वाले पर्यटक आसानी से जा सकते हैं और इस धार्मिक और रमणीय स्थल की सैर कर सकते हैं।