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वन भूमि पर मजार-मस्जिद तोड़ने के विरुद्ध याचिका हाई कोर्ट में खारिज, सीएम ने कहा- स्पष्ट गाइडलाइन तय

हाई कोर्ट ने वन भूमि में बनी मजार, मस्जिद आदि को तोड़े जाने से पहले उनका सर्वे किये जाने की मांग को लेकर दायर जनहित याचिका पर सुनवाई की। मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति विपिन सांघी व न्यायमूर्ति राकेश थपलियाल की खंडपीठ ने सर्वे की मांग करती तथा देहरादून के विकास नगर सहित कालाढूंगी, जसपुर में मजार को नोटिस देने को चुनौती देती याचिकाओं को निरस्त कर दिया।
राजाजी नेशनल पार्क के रामगढ़ रैंज में बनी मजार को आठ मई को जारी नोटिस को चुनौती देती याचिका को भी कोर्ट ने खारिज कर दिया। नैनीताल जिले के निवासी तफज्जुल हुसैन अंसारी सहित अन्य ने जनहित याचिका दायर कर कहा कि राज्य सरकार अतिक्रमण के नाम पर वक्फ संपत्ति का सर्वे किया बिना तोड़ रही है जबकि सुप्रीम कोर्ट ने 2009 में वक्फ संपत्तियों का सर्वे कर नियमावली बनाने के निर्देश दिए थे। हाईकोर्ट ने 2016 में नियमावली बनाई लेकिन सरकार अपनी ही नियमावली का उल्लंघन कर रही है।
याचिका में राज्य में वक्फ संपत्ति का सर्वे अभी तक नहीं हुआ और सरकार ने एक हजार से अधिक मजार व मस्जिद तोड़ दी हैं, जिस पर रोक लगाई जाए और वक्फ संपत्तियों के सर्वे करने व अब तक तोड़ी गई मजारों को फिर से स्थापित करने के लिए सरकार को निर्देशित करने की मांग की गई थी। सरकार की ओर से मुख्य स्थाई अधिवक्ता चंद्रशेखर रावत ने कोर्ट को बताया कि इन मजारों को वन भूमि पर अतिक्रमण कर बनाया गया है। याचिकाकर्ताओं के पास कोई वैध दस्तावेज नहीं हैं। दोनों पक्षों को सुनने के बाद कोर्ट ने याचिकाओं को खारिज कर दिया।

वन भूमि में वर्षों से रह रहे परिवारों को नहीं छेड़ेगी सरकार:
वहीं सरकारी भूमि को अतिक्रमणमुक्त करने को लेकर चल रहे अभियान के तहत वन भूमि में स्थित गोठ, खत्ते, वनग्राम व टोंगिया गांवों में वर्षों से रह रहे परिवारों को नहीं छेड़ा जाएगा। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने मीडिया से बातचीत में अभियान को लेकर स्थिति स्पष्ट करते हुए कहा कि अतिक्रमण हटाने को लेकर स्पष्ट गाइडलाइन तय की गई है। उन्होंने कहा कि जो लोग पिछले कुछ सालों में वन भूमि पर काबिज हुए हैं या धार्मिक आड़ में कुछ प्रतीक खड़े कर लिए गए हैं, उन सभी को अतिक्रमण के दायरे में लिया गया है। किसी को परेशान करना सरकार का उद्देश्य नहीं है।
तराई व भाबर क्षेत्र में वन भूमि पर स्थित खत्तों, टोगिया गांवों, वन ग्रामों के अलावा विभिन्न स्थानों पर गोठ व वन पंचायतों में वर्षों से बसे लोग भी अतिक्रमण अभियान की जद में आने को लेकर सशंकित थे। बड़ी संख्या में ये ऐसे परिवार हैं, जिन्हें वहां बसें कई पीढिय़ां हो गई हैं। वे लंबे समय से भूमि पर मालिकाना हक देने की मांग भी करते आ रहे हैं। अब मुख्यमंत्री ने स्पष्ट किया किया है कि अतिक्रमण हटाओ अभियान के संबंध में मुख्य सचिव को निर्देशित किया गया है कि व्यवस्था ठीक प्रकार से बनाई जाए

मुख्यमंत्री ने कहा कि कुछ वर्षों में जो लोग वन भूमि पर काबिज हुए हैं या धार्मिक स्थलों की आड़ में प्रतीक खड़े किए गए हैं, उन्हें हटाया जा रहा है। इसके अलावा जहां-जहां जनसांख्यिकी बदलाव हुआ है, उनका सत्यापन करना, ठीक प्रकार से जांच करना और हटाना सरकार का काम है। उन्होंने कहा कि जो लोग गोठ, खत्ते, वन ग्राम व वन पंचायतों में वर्षों से रह रहे हैं, उन्हें परेशान करना हमारा उद्देश्य कतई नहीं है। जो भी इस प्रकार की गतिविधियों को करेंगे, उन्हें मानीटर किया जा रहा है। अधिकारियों को कह दिया गया है कि किसी को इस अभियान से कोई परेशानी नहीं होनी चाहिए।

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