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ये है दुनिया के पहले एक्टर जिसने अपने प्रोडूसर तक से पंगा लिया है और अपनी शर्तो पर जीते है ये एक्टर ..

This is the first actor in the world who has messed up even his producer and lives on his own terms.

एक्टर रजित कपूर को बॉलीवुड इंडस्ट्री में 35 साल हो चुके हैं. रजित ने इन 35 सालों में तकरीबन सौ फिल्में की होंगी. एक संपन्न परिवार से आने वाले रजित के लिए एक्टिंग का करियर चुनना आसान नहीं था. अपने पैशन को फॉलो करने के लिए उन्हें परिवार से बागवत करना पड़ा था.

अपने करियर के ग्राफ पर रजित कहते हैं, एक एक्टर के तौर पर कभी-कभी सोचता हूं कि यार मैं ये सब कैसे कर पाया.. अभी तो बहुत कुछ करना बाकी है.. समय निकला जा रहा है.. मैंने पिछले 35 साल के करियर में करीब सौ तक प्रोजेक्ट्स ही किए होंगे. आप टीवी, फिल्में दोनों ही जोड़ लें, तो सौ के आसपास ही होंगे. वहीं मेरे समकालीन में ऐसे कई एक्टर होंगे, जिन्होंने 500 से भी ज्यादा फिल्में की हैं. मैंने उतनी फिल्में नहीं की हैं लेकिन वही किया है, जिसने मुझे उत्तेजित किया हो या प्रोत्साहित किया हो.. मेरे लिए एनर्जी किसी प्रोजेक्ट्स को देनी जरूरी है. मुझे लगना चाहिए कि मैं संभाल सकता हूं. वो मेरे लिए मायने रखता है. उसके लिए मैंने पूरी कोशिश की है. ऐसा नहीं है कि मेरे पास हर समय ऑफर्स का भंडार रहा हो. ऐसी भी कोई बात नहीं और न होती है.

एनएसडी के फॉर्म फाड़ दिए थे (NSD forms were torn)

रजित कहते हैं, दरअसल एक्टिंग मेरे लिए पैशन है. मुझे याद है जब मैंने परिवार के सामने एक्टर बनने की बात हुई थी. तो उस वक्त बहुत बवाल मचा था. पूरे परिवार से बगावत करनी पड़ी थी. गुस्से मैं आकर मैंनें एनएसडी में दाखिला फॉर्म को परिवार के सामने फाड़ लिया था. वो क्रांतिकारी स्वाभाव तो अब भी बरकरार है. वो क्रांतिकारी इंसान आज भी मेरे दिमाग के छूरियां चला रहा है. मैं ऐसा ही हूं. मेरे सोच मेरे विचार ही ऐसे हैं, अगर कुछ ठान लिया है, तो उस पर टूट पड़ते हैं और फिर टस से मस नहीं होते हैं.

थिएटर मेरा पहला प्यार है (theater is my first love)

रजित थिएटर में काफी सक्रिय रहे हैं. फिल्मों से ज्यादा वो थिएटर को तवज्जों देते रहे हैं. इस पर रजित कहते हैं, हां, मेरा प्यार थिएटर है. मैं कई लोगों से सुनता आया हूं कि लोग कहते हैं कि अरे ये खुद को क्या समझता है.. ये चीज क्या है..लेकिन फिर न करने की भी शक्ति तो होनी चाहिए न. इसका मतलब यह नहीं है कि मैंने न किया हो, तो मेरा घमंड बढ़ गया है. अगर मुझे अंदर से आवाज न आए कि मुझे ये चीज नहीं करनी चाहिए, तो मैं क्यों करूं. ये मेरा हक है, मेरा घमंड नहीं है. अगर लोग इसे घमंड की तौर पर देखें, तो वो सही है, मैं अपने रास्ते में सही हूं.

छोटे एक्टर्स को ज्यादा दबाया जाता है (Small actors are pressurized more)

मैं जब काम करना मना करता था, तो काफी लोग कहते थे कि अरे आप तो दिखते ही नहीं हैं. ऐसी भी नौबत आई है, जब मैंने कहा है कि मेरे काम लायक कुछ हो, तो मैं करूंगा लेकिन किसी भी प्रोजेक्ट के लिए हामी नहीं भरने वाला हूं. मुझे एक्टर के तौर पर खुद को टटोलने का मौका मिलेगा, खुद के अंदर झांकने का मौका मिलेगा, तो ही मैं करूंगा, वर्ना नहीं करने वाला. हालांकि किसी एक्टर के लिए आर्थिक स्टेबिलिटी जरूरी है क्योंकि जिसकी फैमिली में जिसको छ लोगों को सपोर्ट करना हो, तो फाइनैंसियल कंसीडरेशन मायने रखती है और होनी भी चाहिए. अभिनेता को फ्री में आखिर क्यों काम करना चाहिए, ये भी यहां एक बहुत बड़ी दिक्कत है. आप यहां टेक्निशन को पैसे देकर बाहर से बुलाते हैं लेकिन एक्टर जब पैसा डिमांड करता है, तो उससे कहा जाता है कि बजट नहीं है.. पैसा नहीं है.. हर एक्टर को इस तकलीफ से गुजरना पड़ता है. खासकर छोटे कैरेक्टर या सपोर्टिंग रोल्स करने वालों को ज्यादा दबाया जाता है. उन्हें बजट न होने का हवाला दिया जाता है.

बगावत की वजह से गंवाए हैं प्रोजेक्ट्स (Projects have been lost due to rebellion)

इस मिजाज की वजह से क्या कभी प्रोजेक्ट्स से हाथ गंवाना पड़ा है. इस पर रजित कहते हैं, हां कई बार ऐसा होता है. मैं देखता हूं कि प्रोड्यूसर एक्टर के लिए पैसे निकालने में हिचकिचाता है, तो मैं कह देता हूं कि अगर एक्टर को देने के लिए पैसे नहीं हैं, तो मत बनाईए फिल्म… लोकेशन के पैसे हैं.. टेक्निकल टीम के लिए पैसे हैं.. एक्टर के लिए क्यों नहीं हैं.. तो अगर इस बात को रखने पर उन्हें बुरा लगता है, तो लगने दो बुरा.. देखो.. हर एक्टर इन हालात से गुजरता है लेकिन दुर्भाग्य की बात यह है कि यहां सप्लाई ज्यादा है, तो डिमांड कम है. अगर किसी एक्टर ने मना कर दिया है, तो कोई उसे फ्री में करने को तैयार हो जाता है. इसमें क्या होता है, जो अभिनेता है, वो एक्सप्लॉइट हो जाता है. इसके लिए जिम्मेदार हम भी हैं. लेकिन वो मजबूरी और काम के लालच के तहत खुद के स्टैंडर्ड को गिराते जाते हैं. सामने वाला इसी चीज का फायदा उठाता रहता है.

यहां स्टार्स को पैसे मिलते हैं, एक्टर को नहीं (Here stars get paid, not actors)

रजित आगे कहते हैं, इस बात से सहमत हूं. अगर सौ रुपये फिल्म का बजट है और उसमें से 80 स्टार ले जाए, तो बाकी क्या ही बचा. आप एक अच्छी फिल्म फिर बना नहीं पाते हो. फिर वो फिल्म फ्लॉप हो जाती है और आपको लगता है कि आपने तो करोड़ो रुपये खर्च किए हैं फिर भी फिल्म फ्लॉप हो गई. दरअसल बैलेंस ही नहीं है. अगर 80 प्रतिशत स्टार ले जा रहा है, तो आप फोकस फिल्म पर कैसे करोगे. बदलाव आया है कि हमारा स्टार सिस्टम टूट रहा है. अब वो चाहे बजट की वजह से हो, ओटीटी की आने की वजह है.. वर्ल्ड सिनेमा एक्सपोजर की वजह है, लोग अब स्पैनिश, कोरियन सिनेमा जॉनर में फिल्में एक्सप्लोर कर रहे हैं. स्टार वैल्यू कुछ एक्टर्स में हैं. अब लोग रजनीकांत और शाहरुख जैसे लोगों की फिल्में देखने जाएंगे. वो भी अपने लेवल पर जायज है. वो फैन फॉलोइंग है, जिन्होंने बनाई है. उनका कमाया है, इसमें कोई गलत नहीं है. अगर संजीव कुमार की कोई फिल्म होगी, तो मैं जरूर जाऊंगा, चाहे वो फिल्म हिट हो या फ्लॉप..

रजित कहते हैं, ओटीटी के आने के बाद सिनेमा में बहुत बदलाव आया है. हम अपने राइटर्स को वो तवज्जों देना शुरू कर रहे हैं. केवल क्रेडिट तक ही नहीं बल्कि पेमेंट भी अब बढ़ा है. अब लोगों की आंखें खुल रही हैं. जब बुनियाद एक स्क्रीनप्ले राइटर के हाथ में होती है, तो उन्हें ही क्यों उनके हक का पेमेंट देते हैं. वो हो रहा है. थोड़ा स्लो है, लेकिन हो रहा है. मैं इसे एक अच्छा पहल मानता हूं.

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admin

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